चंदेरी क्षेत्र के ऐतिहासिक प्राचीन तालाब करते हैं जीर्णोद्धार की मांग



केशव कोली /चंदेरी |  विश्वव्यापी कोरोना वायरस महामारी संक्रमण रोकथाम हेतु वर्तमान में संपूर्ण देश में जारी लाकडाउन यानि कोरोना काल अंतर्गत भारत सरकार द्वारा देश के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है ताकि जान है और जहान हैं दोनों ही सुचारु रुप से क्रियाशील रहें और देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव ना पड़े। इस हेतु किए जा रहे सार्थक प्रयास अंतर्गत मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का प्रभावी ढंग से ग्रामीण क्षेत्र में  क्रियान्वयन किया जा रहा है। यही नहीं  भारत  सरकार ने मनरेगा के लिए पैकेज में विशेष राशि का प्रावधान कर यह प्रयास किया है कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो सके तो दूसरी ओर कोरोना काल में महानगरों से किए जा रहे पलायन उपरांत गांव में आ रहे मुसीबत के मारे मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा ना हो सके। इस क्रम में सरकार ने मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी राशि में इजाफा कर मनरेगा अंतर्गत किए जाने वाले कार्य हेतु प्राथमिकताएं भी तय की गई हैं जिसमें से एक है जल संरक्षण यानी जल संरक्षण अंतर्गत प्राचीन जल स्रोतों का जीर्णोद्धार कर उन्हें बचाना, नवीन जल संरचनाओं का निर्माण आदि। मध्य प्रदेश सरकार भी कोरोना काल में ग्रामीण एवं प्रवासी मजदूरों के लिए कोई नहीं रहेगा बेरोजगार सबको मिलेगा रोजगार कहते हुए श्रम सिद्धि अभियान चलाकर मनरेगा अंतर्गत रोजगार का इंतजाम कर रही है। अच्छी बात यह है कि मध्यप्रदेश शासन भी मनरेगा कार्य अंतर्गत अन्य कार्यों सहित जल संरक्षण को आगे रखकर कार्य कर रही है जिसकी शुरुआत भी ग्रामीण क्षेत्र में सब दूर हो चुकी है। जैसा की जानकारी सार्वजनिक हो रही है कि छिंदवाड़ा जिले के देवगढ़ ब्लॉक में मनरेगा तहत पुरानी पैतालीस बावड़ियों की पहचान कर उन्हें ठीक करने का कार्य किया जा रहा है। बस यही से हमारी बात शुरु होती है क्योंकि हमारा संदर्भ है जल संरक्षण अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में स्थित प्राचीन बावड़ियों, तालाबों का जीर्णोद्धार कर हमारी संस्कृति जल विरासत को बचाना। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी पुरातन भारतीय मानव संस्कृति जल संरचनाओं के इर्द-गिर्द ही पली-पुसी है अतएव इन्हें बचाए रखने की जितनी जवाबदारी शासन की है उतनी ही हमारी भी है।


 


ऐतिहासिक एवं पर्यटन नगर चन्देरी एक ऐसा पर्यटन स्थल है जो अपने साथ नगर में ही नहीं अपितु ग्रामीण क्षेत्र स्थित अनेकों-अनेक ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरों को भी सजेहे हुए हैं। ग्रामीण अंचल में पुरा संपदा का कोई अभाव नहीं है यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्थित अति पुरातन अमूल्य धरोहर चंदेरी पर्यटन को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम भी है। फिर चाहे वह महल, बावड़ियां, तालाब, नदियां, शैलाश्रय आदि अन्य विरासत रही हो। इस क्रम में याद रखना होगा कि वर्तमान चंदेरी के पूर्व महाभारत कालीन राजा शिशुपाल की राजधानी चंदेरी जिसे आज बूढ़ी चंदेरी के नाम से जाना पहचाना जाता है। वर्तमान में बूढ़ी चंदेरी बेचिराग गांव के रूप में शिशुपाल नामक प्राचीन गढ़ी एवं प्राचीन मंदिरों की श्रंखला अन्य पुरा अवशेष  राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा संरक्षित होकर ग्राम पंचायत क्षेत्र अंतर्गत स्थित हैं।


       


चंदेरी के सीमावर्ती ग्राम पंचायत रामनगर स्थित ऐतिहासिक माजतिया नामक तालाब (15वीं सदी) एवं तालाब पार पर स्थित ऐतिहासिक प्राचीन रामनगर महल (1698 ईस्वी) स्थित है। स्मरण रहे रामनगर महल ऐतिहासिक महत्व का घोषित होकर मध्यप्रदेश शासन राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है। ग्राम रामनगर में ही एक अन्य ऐतिहासिक चिमनुआ  (1490-95 ईस्वी) नामक तालाब स्थित है। इसी तरह नगर की सीमावर्ती ग्राम पंचायत सिंहपुर अंतर्गत 1433 ईस्वी में निर्मित प्राचीन ऐतिहासिक तालाब जिसे आज सिंहपुर तालाब के नाम से पहचाना जाता है। तालाब का महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि तालाब से लगकर पहाड़ पर ही एक प्राचीन महल स्थित है जिसे आज सिंहपुर महल (1656 ईस्वी) के नाम से पुकारा जाता है। यह वही महल है जिसे मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा हेरिटेज होटल में तब्दील किए जाने की कवायद जारी है। इसी प्रकार सीमावर्ती ग्राम पंचायत मुरादपुर अंतर्गत 15 वीं सदी में निर्मित ताकबंदी नामक प्राचीन तालाब स्थित है। यहां इस बात को भी याद रखना होगा कि यह सभी प्राचीन तालाब चंदेरी पर्यटन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में एक नहीं कई ग्रामों में प्राचीन तालाब आज भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए जन सेवा में संलग्न है। 


         ऊपर वर्णित प्राचीन तालाब सदियों पूर्व निर्मित होकर एक नहीं अनेक आसमानी- सुल्तानी मुसीबत झेलते हुए बहुत हद तक आज भी हमारे समक्ष ज्यों के त्यों अपनी उपस्थिति बनाए हुए जनसामान्य सहित पशु-पक्षी कल्याण में जुटे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर तालाब में हो रहा मछली पालन किसी ना किसी परिवार को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करा रहा है। उक्त सभी तालाब चन्देरी पर्यटन के सहायक केंद्र बिंदु होने के कारण इनका महत्व कई गुना अधिक बढ़ जाता है। रामनगर महल तो  तालाब की पार पर स्थित है और महल के दोनों ओर तालाब की पार। उल्लेखनीय हैं की तालाब की पार समतलीकरण, पार दीवार निर्माण आदि कार्य आवश्यकता क्रम में सुधार की मांग करते हैं। इसी प्रकार सिंहपुर नामक प्राचीन तालाब पार, घाट आदि जीर्णोद्वार की बाट जोह रहे हैं। ग्राम मुरादपुर स्थित प्राचीन  ताकबंदी तालाब वास्तुकला नजरिए से अपनी एक अलग पहचान स्थापित किए हुए हैं। तालाब पार से तालाब मध्य स्थित समतल चौक-चौकोर स्थल तक  पहुंच मार्ग के रूप में निर्मित प्राचीन पुल तालाब की विशेषताओं को और अधिक बढ़ा देता है। लेकिन तालाब स्वंय चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए जीर्णोद्वार की मांग करता है।


         जिला अशोकनगर का इकलौता जल प्रपात ग्राम पंचायत जमा खेड़ी अंतर्गत ओर नामक नदी पर  प्राकृतिक रूप धारण कर सम्पूर्ण  क्षेत्र में भरका धाम नामक जल प्रपात के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन सुगम पहुंच मार्ग की उपलब्धता ना होना कहीं ना कहीं जनमानस को परेशानी का सबब बनी हुई है। ठीक इसी प्रकार ग्राम पंचायत नानौन में मध्यप्रदेश शासन राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक लिखीदांत शैलाश्रय सुगम पहुंच मार्ग को आज भी तरस रहा है। बीच रास्ता में बरसों से अधूरी पुलिया का पूर्ण ना होना देशी-विदेशी पर्यटकों को आवागमन में अनेक प्रकार की परेशानियां उत्पन्न करता है।


         सब मिलाकर कहना यह है कि यदि मनरेगा योजना अंतर्गत प्राथमिकता क्रम में उक्त तालाब पारों घाट एवं पहुंच मार्ग आदि कार्यों को शामिल कर  पूर्णता की ओर कार्यवाही की जाती है तो मनरेगा सक्रिय जॉब कार्ड धारियों के साथ कोरोना के सताए गांव आए मजदूरों को रोजगार प्राप्त होगा। वहीं इसके ठीक विपरीत एक ओर जहां प्राचीन तालाब पारों को मजबूती प्राप्त होगी, वहीं दूसरी ओर पार खूबसूरती में इजाफा होगा, आवागमन सुगम होगा, चंदेरी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। यानी मनरेगा के माध्यम से आम के आम गुठलियों के भी दाम कहावत चरितार्थ होगी।